13 मिनट पहलेलेखक: देवांशु तिवारी / राजेश साहू
- कॉपी लिंक
दबंगई-जरायम-रसूख-सियासत-सत्ता-इश्क-मर्डर-सजा और अब रिहाई! जरायम की दुनिया में दस्तक के जरिए अमरमणि त्रिपाठी ने सियासत में कदम रखा और सत्ता की सरपरस्ती पाकर फर्श से अर्श पर जा पहुंचा। लेकिन इश्क-अवैध संबंध-बीबी की सौतिया डाह-साजिश-कत्ल-तफ्तीश और अदालत के चक्रव्यूह में इस कदर उलझा कि सितारे गर्दिश में जा पहुंचे। हनक जमींदोज हो गई, चमक मटियामेट हो गई।
मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे पूर्व बाहुबली मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि आज जेल से बाहर आएंगे। दोनों गोरखपुर जेल में 20 साल से आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। जेल में अमरमणि और उनकी पत्नी के अच्छे आचरण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग ने रिहाई का आदेश जारी किया है।
उत्तर प्रदेश का बाहुबली मंत्री आखिर कैसे सलाखों के पीछे पहुंच गया? इसके पीछे की कहानी दर्दनाक है। इसमें प्यार भी है और साजिश भी। ईगो भी है और मर्डर भी। चलिए सबसे पहले आपको लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी ले चलते हैं, जहां 20 साल पहले दिन-दहाड़े एक मर्डर हुआ था…

ये तस्वीर जनवरी 2001 की है जब मधुमिता मंच से किवाताओं का पाठ करती थी।
ये मर्डर स्टोरी…एक कवयित्री के इर्द-गिर्द घूमती है। नाम: मधुमिता शुक्ला, लखीमपुर जिले से ताल्लुक रखती थीं पर लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में रहती थीं। मंचों पर वीर रस की कविताएं पढ़ती थीं। अमरमणि के संपर्क में आईं तो उनका नाम बड़ा हो गया। मंच से मिली शोहरत और सत्ता से नजदीकी ने उन्हें पावरफुल बना दिया।
अमरमणि और मधुमिता अक्सर एकदूसरे से मिलते रहते थे। धीरे-धीरे ये मुलाकातें प्रेम में बदल गईं। दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने। मधुमिता प्रेग्नेंट हो गईं। उन पर गर्भपात करवाने का दबाव बढ़ा पर उन्होंने नहीं करवाया। मधुमिता 7 महीने की गर्भवती थी, अमरमणि गर्भपात करवाना चाहते थे, लेकिन मधुमिता इसके लिए राजी नहीं हुईं।
- लव स्टोरी जो खून से खत्म हुई…
तारीख थी 9 मई 2003…सुबह के 10.30 बज रहे थे। कॉलोनी की तीसरी गली में मशहूर कवयित्री मधुमिता शुक्ला के घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया। 7 महीने की गर्भवती मधुमिता ने दरवाजा खोला तो सामने संतोष राय और प्रकाश पांडे खड़े थे। मधुमिता ने अंदर बुलाकर नौकर देशराज को चाय बनाने को कहा। देशराज किचन में चला गया। अभी चाय उबली भी नहीं थी अंदर से गोली चलने की आवाज आई। देशराज भागते हुए कमरे में पहुंचा तो देखा कि मधुमिता खून में सनी तड़प रही हैं। वो कुछ कर पाता इससे पहले उनकी सांसें रुक गईं।

मधुमिता शुक्ला 7 महीने की गर्भवती थी, अमरमणि गर्भपात करवाना चाहते थे, लेकिन मधुमिता इसके लिए राजी नहीं हुईं।
मधुमिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। संतोष राय और पवन पांडे के साथ अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी और भतीजे रोहितमणि त्रिपाठी को आरोपी बनाया गया। प्रदेश में बसपा सरकार थी और अमरमणि त्रिपाठी मंत्री थे। CBCID ने 20 दिन की जांच के बाद मामला CBI को सौंपा। गवाहों से पूछताछ हुई तो 2 गवाह पलट गए।
मधुमिता की बहन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं। उन्होंने याचिका दायर करते हुए केस को लखनऊ से दिल्ली या तमिलनाडु ट्रांसफर करने की अपील की। कोर्ट ने 2005 में केस उत्तराखंड ट्रांसफर कर दिया। 24 अक्टूबर 2007 को देहरादून सेशन कोर्ट ने पांचों लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। अमरमणि त्रिपाठी नैनीताल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन सजा बरकरार रही।

मधुमिता हत्याकांड मामले में अमरमणि त्रिपाठी को सजा दिलवाने के लिए उनकी बहन निधि ने लंबी लड़ाई लड़ी।
मधुमिता का लेटर बना अमरमणि के गले की फांस
दिसंबर 2002 में मधुमिता ने एक पत्र लिखा जो उनकी मौत के बाद उनके कमरे से मिला। उसमें उन्होंने लिखा था, ‘4 महीने से मैं मां बनने का सपना देखती रही हूं, तुम इस बच्चे को स्वीकार करने से मना कर सकते हो पर मैं नहीं कर सकती, क्या मैं महीनों इसे अपनी कोख में रखकर हत्या कर दूं? क्या तुम्हें मेरे दर्द का अंदाजा नहीं है, तुमने मुझे सिर्फ एक उपभोग की वस्तु समझा है।’ मधुमिता का यह पत्र जांच टीम के लिए निर्णायक साबित हुआ। हत्या के बाद मधुमिता की कोख में मर चुके बच्चे का DNA टेस्ट किया गया। उसका मिलान अमरमणि त्रिपाठी के DNA से हुआ तो दोनों एक मिले।
मधुमिता हत्याकांड में नाम आते ही अमरमणि के राजनीतिक करियर का ढलान शुरू हो गया। मायावती ने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया तो सपा में चले गए। 2007 में जेल के अंदर से चुनाव लड़ा और लक्ष्मीपुर सीट से जीत गए, लेकिन 7 महीने बाद ही मधुमिता हत्याकांड में उम्रकैद की सजा मिली और पूरा राजनीतिक करियर खत्म हो गया।
- यहां रुकते हैं। अब घटनाओं के जरिए अमरमणि त्रिपाठी के राजनीतिक जीवन पर चलते हैं…
हरिशंकर तिवारी का उत्तराधिकारी बनकर राजनीति में एंट्री
1970 के दशक में गोरखपुर में छात्र राजनीति पूरे उफान पर थी। इसमें भी दो गुट थे। ब्राह्मणों के गुट का मसीहा हरिशंकर तिवारी और ठाकुरों के गुट का मसीहा वीरेंद्र प्रताप शाही था। दोनों गुटों में हर महीने फायरिंग होती। लोगों की मौत होती। वजह बस वर्चस्व स्थापित करना, ठेके हासिल करना था। उस वक्त सारे प्रभावशाली लोगों ने अपना एक पक्ष चुन लिया था। तब अमरमणि त्रिपाठी सीन में आए और हरिशंकर तिवारी के खास बन गए।

हरिशंकर तिवारी के राजनीतिक उत्तराधिकारी बताए जाने वाले अमरमणि त्रिपाठी ने पहला चुनाव 1980 में लड़ा,लेकिन हार गए।
पहले 2 चुनाव हार गए अमरमणि
हरिशंकर तिवारी ने अमरमणि त्रिपाठी को 1980 में अपने सबसे बड़े दुश्मन वीरेंद्र प्रताप शाही के खिलाफ लक्ष्मीपुर सीट से चुनाव मैदान में उतारा। साल 2008 के परिसीमन के बाद से इस सीट का नाम नौतनवा है। अमरमणि को कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन था, लेकिन वीरेंद्र को नहीं हरा सके। 1985 में अमरमणि फिर से चुनाव में उतरे, लेकिन नतीजा नहीं बदला। इस हार के बाद उन्होंने पार्टी बदल ली। कांग्रेस ज्वॉइन की।1989 में इसका फायदा हुआ और अमरमणि पहली बार विधायक बन गए।
1991 और 1993 के विधानसभा चुनाव में अमरमणि को कुंवर अखिलेश प्रताप सिंह ने हरा दिया, लेकिन 1996 में स्थिति पलट गई। अमरमणि दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गए। प्रदेश में भाजपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनी तो उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। भाजपा ने उन्हें न सिर्फ पार्टी में शामिल किया बल्कि मंत्रालय भी सौंप दिया।
बच्चा किडनैपिंग में आया नाम तो बर्खास्त हुए

अमरमणि 2001 में भाजपा सरकार में मंत्री रहे हैं। बाद में वह बसपा में आ गए और 2003 में वो बसपा सरकार में मंत्री थे।
साल 2001, बस्ती जिले के एक बड़े कारोबारी के 15 साल के बेटे राहुल मदेसिया का अपहरण हो गया। मामला इतना हाई प्रोफाइल था कि लखनऊ से दिल्ली पहुंच गया। प्रदेश की भाजपा सरकार ने पुलिस को जल्द बच्चा खोज निकालने का आदेश दिया। पुलिस ने तेजी दिखाते हुए राहुल को खोज निकाला। जांच हुई तो पता चला राहुल को अमरमणि त्रिपाठी के बंगले पर रखा गया था। BJP सरकार की बेइज्जती होने लगी तो उस वक्त के CM राजनाथ सिंह ने अमरमणि त्रिपाठी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। भाजपा से अगल हुए मंत्री ने बसपा का दामन थाम लिया।
साल 2003 में मधुमिता हत्याकांड के वक्त अमरमणि बसपा सरकार में मंत्री थे। इस हत्याकांड ने उनकी पॉलिटिकल लाइफ को लगभग खत्म ही कर दिया। मधुमिता के मर्डर के बाद से ही अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि गोरखपुर जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।
- अब आइए जानते हैं, अमरमणि त्रिपाठी के करीब 20 साल जेल में कैसे कटे…
ज्यादातर वक्त मेडिकल कॉलेज में भर्ती रहे अमरमणि

BRD के सभी कमरों के ऊपर नंबर लिखा हुआ है। लेकिन कमरा नंबर 15 के बाद 17 नंबर का कमरा आ जाता है। क्योंकि 16 में लंबे वक्त से अमरमणि भर्ती रहा है।
अमरमणि और उनकी पत्नी कहने को तो जेल में रहे। लेकिन सूत्र बताते हैं कि उनका ज्यादातर वक्त गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बीता। जब से सजा हुई दोनों अधिकतकर वक्त तक बीमार रहे और इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज में भर्ती रहे। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राइवेट वार्ड की दूसरी मंजिल पर 32 कमरे हैं। इसमें ऊपरी हिस्से के 16 नंबर कमरे में अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी एडमिट रहे हैं। वार्ड के सभी कमरों के ऊपर नंबर लिखा हुआ है। लेकिन कमरा नंबर 15 के बाद सीधे 17 नंबर का कमरा आ जाता है।
जिस कमरे में अमरमणि रहे हैं। उस पर 16 नंबर नहीं लिखा। यह कमरा सीढ़ियों से सटा है। कमरे के बाहर पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं। इसके साथ ही अमरमणि के अपने आदमी भी रहते हैं, जो किसी भी आने-जाने वाले पर निगाह रखते हैं। वहीं, अमरमणि त्रिपाठी के मामले में जेल प्रशासन से लेकर बीआरडी मेडिकल कॉलेज प्रशासन कुछ बोलने को तैयार नहीं होते। सवाल करने पर कहा जाता है कि बिना ऊपर से आदेश के हम कोई जानकारी नहीं दे सकते हैं।
- हालांकि, अब यह देखना है कि क्या इस रिहाई के साथ उनकी बीमारी भी ठीक होगी या फिर वे अभी भी बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती होकर इलाज कराएंगे?