लखनऊ10 मिनट पहलेलेखक: गौरव पांडेय
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2024 आम चुनाव में परिवारवाद एक बार फिर बड़ा चुनावी मुदा होगा। झलक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी 15 अगस्त को लाल किले से ही दिखा दी है। यूपी परिवारवाद का गढ़ है। सपा की बुनियाद परिवारवाद की राजनीति ही है। बसपा में अब मायावती के भतीजे आकाश आनंद बड़ी भूमिका में हैं। गांधी परिवार की पूरी राजनीति अमेठी-रायबरेली पर ही टिकी रही है। लेकिन यूपी में भाजपा में भी परिवारवाद से अछूती नहीं है। पार्टी में 11 ऐसे बड़े सांसद चेहरे हैं, जिनका परिवार भी राजनीति में बड़े पदों पर है या पहले रह चुका है।
तो सवाल खड़े होते हैं कि क्या भाजपा इस आम चुनाव में परिवार राजनीति करने वाले 11 सांसदों का टिकट काटेगी? क्या टिकट बंटवारे में परिवारवाद के समीकरण को ध्यान में रखा जाएगा? यूपी में भाजपा के पास परिवार राजनीति में 32 बड़े चेहरे हैं। आज मंडे स्टोरी में बात ‘भाजपा के परिवारवाद’ की करते हैं।
लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने 12 बार परिवारदवाद का जिक्र किया

पीएम मोदी ने लगातार 10वीं बार लाल किले पर ध्वजारोहण किया।
15 अगस्त को पीएम मोदी ने लाल किले पर 10वीं बार तिरंगा फहराया तो इस बार देशवासियों को उन्होंने “परिवारजन’ कहकर बुलाया। कहा- लोकतंत्र में एक बीमारी आई है, वो परिवारवादी पार्टी है। परिवारवाद का मूल मंत्र है- ऑफ द फैमिली, बाई द फैमिली और फॉर द फैमिली। प्रधानमंत्री ने अपने 90 मिनट के संबोधन में 12 बार परिवारवाद का जिक्र किया। इससे आप समझ सकते हैं कि इस बार आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी परिवारवाद को लेकर कितने संजीदा और आक्रामक होने वाले हैं।
देश के सबसे बड़े सियासी सूबे में मुख्य विपक्षी दल के मुखिया ने इस पर काउंटर किया है। उनका कहना है- यूपी में परिवारवाद के पहले उदाहरण सीएम योगी हैं। वहीं, भाजपा सरकार में उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या की डिक्शनरी में परिवारवाद की परिभाषा अलग है। उनका कहना है कि यदि पार्टी में पिता सांसद और बेटा विधायक है तो ये परिवारवाद की श्रेणी में नहीं आता है।
सबसे पहले यूपी में भाजपा के राजनीतिक परिवारों को जान लेते हैं, कौन क्या है?


यूपी में भाजपा के सहयोगियों की बुनियाद भी परिवार की राजनीति पर ही टिकी
राजनीति में जाति और वोट एक ऐसा फैक्टर है, जो भाजपा को परिवारवादी पार्टियों से गठबंधन के लिए मजबूर करता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा का जिन तीन दलों के साथ गठबंधन है, उनकी बुनियाद भी परिवार की राजनीति पर ही टिकी है।
भाजपा के इन तीन घटक दलों के नाम अपना दल एस, निषाद पार्टी और सुभासपा है। ये दल यूपी में क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों के आधार पर बने हैं। इन पार्टियों की राजनीति एक ही परिवार के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है।
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अपना दल और निषाद पार्टी ने पूर्वांचल में भाजपा को अजेय बढ़त दिलाने में अहम रोल निभाया था। अब आम चुनाव से पहले सुभासपा भी NDA में शामिल हो गई है। आइए एक-एक करके इन पार्टियों की परिवारवादी राजनीति को जानते समझते हैं…





भाजपा कैडर में परिवारवाद कंट्रोल है, बस बाहर से आने वाले नेताओं को काबू करना होगा
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्द्धन त्रिपाठी कहते हैं कि प्रधानमंत्री के परिवारवाद पर बात करने से भाजपा के एक अंदर भी मैसेज जाता है। भाजपा ने कैडर के अंदर तो परिवारवाद को काफी हद तक कंट्रोल कर लिया है। यही वजह है कि राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को योगी मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिली। हालांकि भाजपा में बाहर से आए तो परिवारवाद को रोकना ही बड़ी चुनौती है।
यही वजह है कि भाजपा में जब परिवारवाद का मुद्दा उठता है तो कार्यकर्ता असहज होते हैं, क्योंकि टिकट बंटवारे में इसकी झलक दिख जाती है। यदि भाजपा आने वाले चुनाव में इसका ख्याल रखती है, तो चीजें उसके लिए और बेहतर ही होंगी।
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