लखनऊ20 मिनट पहले
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मुख्यमंत्री ऐसे ही कोई नहीं बन जाता है। वह बड़े विजन को लेकर इस पद तक पहुंचता है। जनता के बीच से निकलकर उनके मुद्दों, समस्याओं से वह बखूबी वाकिफ होता है। ऐसे में मुख्यमंत्री एक विजन ही दे सकता है, उसको धरातल पर उतारना नौकरशाही खासकर जिलाधिकारियों का काम होता है। अगर अधिकारियों ने विजन को रियलिटी में बदला तो परिणाम बेहतर मिलता है।
यह बातें शनिवार को उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मुख्य सचिव और अर्थशास्त्री आलोक रंजन ने कही। वे हजरतगंज स्थित बलरामपुर गार्डन में चल रहे पुस्तक मेला में अपनी पुस्तक विमोचन के मौके पर सवालों के जवाब दे रहे थे। इस दौरान आलोक रंजन की पुस्तक ‘द कलेक्टर टुडे’ और इसका हिंदी अनुवाद ‘जिलाधिकारी, जिला प्रशासन की चुनौतियां’ का विमोचन किया। मंच पर लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरविंद मोहन, आईएएस हीरा लाल, स्मॉल इंडस्ट्री एंड मैन्युफैक्चर असोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र श्रीवास्तव भी मौजूद रहे।
जनता की बात सुनकर खड़ा होगा विकास का मॉडल
आलोक रंजन ने कहा कि जनता की समस्याओं को बिना सुने आप विकास का मॉडल खड़ा नहीं कर सकते। बताया कि नौकरशाह के जीवन में डीएम का पद सबसे ज्यादा मायने रखता है। वह अपने कार्यकाल में 5 जगह डीएम रहे। वहां जनता से वह हर समय मिलने के लिए उपलब्ध रहते थे। अलोक रंजन ने कहा कि एक जिलाधिकारी को किसी भी जिले के विकास के लिए अध्ययन करना बेहद जरुरी है। शासन की योजनाओं को जिलों में लागू करने के लिए अच्छे नेतृत्व की आवश्यकता होती है। राजनीतिक दबाव के साथ काम करना जरुरी है, अपनी बात भी रखनी चाहिये।
किताब में अनुभव को साझा किया
आलोक रंजन ने बताया कि उन्होंने अपनी किताब में अपनी नौकरी के दिनों के अनुभवों को साझा किया है। पांच जिलों गाजीपुर, बांदा, गाजियाबाद, प्रयागराज और आगरा में जिलाधिकारी रह चुका हूं। इसमें गाजीपुर के लोगों के साथ अब तक जुड़ाव है। वहां से हर दूसरे दिन कोई न कोई जरुर मिलने आता है। आलोक रंजन ने बताया कि ये किताब उन्होंने 1995 में लिखी थी। यह उसका अपग्रेड वर्जन है। जिलाधिकारियों की चुनौतियां बढ़ी हैं। उन्होंने बताया कि किताब मेरे अनुभवों पर आधारित है। मैने पहले भी कई किताबें लिखी हैं।
छोटे जनपद से करें शुरुआत
आलोक रंजन ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि जिलाधिकारी के पद पर बदलाव आया है, और यह जरूरी भी है, जबतक बलदाव नहीं होगा तब तक कुछ नयापन नहीं होगा। हालांकि पब्लिक की आस्था इस पद पर बैठे व्यक्ति के लिए पुरानी ही जैसी है। पहले डीएम सबका हेड होता था और आज सब विभाग का अलग अलग हेड है लेकिन सभी के साथ विभागीय सामंजस्य बनाना डीएम की ही जिम्मेदारी है। छोटे जनपद से शुरू करें और फिर बड़े जनपदों की ओर बढ़ें अधिकारी। डीएम का कंट्रोल जिले पर रहना चाहिए।
डीएम-एसपी मिलकर काम करें तो बेहतर परिणाम
कमिश्रनरेट प्रणाली कैसी है के सवाल पर आलोक रंजन ने कहा कि डीएम और एसपी मिलकर काम करें तो बेहतर परिणाम दिया जा सकता है। बड़े जिलों के लिए कमिश्नरेट प्रणाली ठीक है। पुलिस की कार्यशैली में सुधार होना चाहिये। हालांकि कमिश्नरेट प्रणाली को आईएएस वर्सेज आईपीएस की नजर से नहीं देखना चाहिये। पुलिस का अपग्रेड होना बेहद जरुरी है। पब्लिक सर्विस में एथिक्स बहुत जरूरी है। पब्लिक को बेहतर सर्विस देना हर अधिकारी का कर्तव्य है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा खड़े होना चाहिए।