आगरा4 मिनट पहले
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आगरा में ऐतिहासिक कैलाश मेले का हुआ शुभारंभ।
आगरा के प्राचीन मेले कैलाश महादेव की रविवार से शुरुआत हो गई। आगरा के सांसद और केंद्र सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल ने दीप प्रज्वलित कर और कैलाश महादेव का पूजन कर ऐतिहासिक मेले की भव्य शुरुआत कर दी। सिकंदरा चौराहे से मंदिर परिसर तक तमाम सुंदर दुकान और तमाम बड़े-बड़े झूले इस मेले का आकर्षण बढ़ा रहे हैं।
कैलाश महादेव के मंदिर पर सावन के तीसरे सोमवार पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान प्रशासन की तरफ से जिले में 1 दिन का सरकारी अवकाश भी घोषित किया जाता है। इस सरकारी अवकाश के घोषित होने के पीछे भी एक ऐतिहासिक कहानी बताई जाती है।
सावन के तीसरे सोमवार पर भव्य मेले का आयोजन
बताया जाता है कि करीब 125 साल पहले अंग्रेजों के शासन के समय एक अंग्रेज कलेक्टर अपनी पत्नी के साथ कैलाश मंदिर के पास मौजूद जंगल में शिकार करने आया था। इस दौरान अधिकारी की पत्नी जंगल में कहीं खो गई। उसने अपनी पत्नी को काफी तलाशा लेकिन जब वह हार गया तो वह कैलाश मंदिर आया। यहां के महंत को अपनी समस्या बताई। महंत के कहने पर अंग्रेज अधिकारी ने भोलेनाथ का ध्यान लगाया और उनका पूजन किया। जिसके बाद अगली सुबह अंग्रेज अधिकारी की बीवी स्वयं घर वापस आ गई। ऐसे में महादेव की कृपा से प्रसन्न होकर अंग्रेज अधिकारी ने कैलाश मंदिर पर साल में एक दिन के मेले और अवकाश की घोषणा कर दी। उसके बाद से ही मंदिर पर सावन के तीसरे सोमवार पर भव्य मेले का आयोजन होता है।
कैलाश मंदिर पर मेले में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को कोई परेशानी ना हो इसके लिए यातायात पुलिस द्वारा 20 अगस्त शाम 4:00 से जिले में यातायात डायवर्जन जारी किया गया है। इसके अंतर्गत शहर के बाहर से आने वाले कोई भी बाहरी वाहन सिकंदरा चौराहे की तरफ प्रवेश नहीं करेंगे। इसके लिए जारी किए गए डायवर्जन प्लान के तहत ही सभी वाहन निकाले जाएंगे।
कैलाश महादेव की दोनों शिवलिंग को स्थापित कर दिया
मंदिर के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि करीब 5000 साल पहले ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र ऋषि अगस्त के साथ कैलाश पर्वत पर महादेव का घोर तप किया था। जिससे महादेव ने प्रसन्न होकर अपने स्वरूप में 2 शिवलिंग ऋषि जमदग्नि को दिए थे। कहा था कि अगर यह शिवलिंग कहीं भी रख दिए। वही विराजित हो जाएंगे। ऐसे में ऋषि जमदग्नि वापस लौटते में जब यमुना तट पर पहुंचे तो उन्होंने स्नान करने के लिए दोनों शिवलिंग को यमुना किनारे रख दिया। स्नान करने के बाद जब वह अपने पुत्र के साथ शिवलिंग उठाने चले तो आकाशवाणी हुई। कहा गया कि यह शिवलिंग एक बार जहां स्थापित हो जाती है। वहां से नहीं जाती। ऐसे में ऋषि जमदग्नि ने कैलाश महादेव की दोनों शिवलिंग को यहीं पर स्थापित कर दिया। उसके बाद से ही यहां भोलेनाथ का पूजन होने लगा।